Monday, July 30, 2012

मैं बोरेवाला !


शेख पीरन बोरेवाला  


कसाब, पिन्जारी, लद्दाफ, दुदेकुला, घोड़ेवाला, लकड़ेवाला, चमड़ेवाला-
और मैं हूँ बोरेवाला
एक अनजान मुसलमान
मुसलमानी तवारीख में मेरी कहीं जगह नहीं
खानदानी मुसलमानों द्वारा अँधेरे में धकेला हुआ
अपने काम के चलते तिरस्कृत
किन्तु फिर भी एक मुसलमान
बोरेवाला मुसलमान!

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जंगल जैसे मेरी माँ थी
पहाड़ियों पर चढ़ता था
लकड़ियों को काट कर बेच कर जीता था
घाटियों, सोतों में घुमते हुए
खजूर का पत्ता जमा कर
चटाइयां बनाता था
इस तरह मैं बोरेवाला कहलाने लगा  

तुम मुझसे परहेज़ करते रहे
क्यों कि मेरी जाति और जीने का अंदाज़ ही ऐसा था
तुम मुझे नाकाबिल समझते रहे
भूखे पेट रह कर भी मैंने कलमा सीखा
तुम मुझसे दूरी रखते हो
फिर भी मैं सूरा रटता हूँ
तुम्हारी तरह नमाज़ रोज़ा और ज़कात करता हूँ
कभी-कभी तुम्हारे बीच होता हूँ
किन्तु तुम्हारी आँखों में फिर वही घृणा
अजीब सी बातें करते हो
ठंडापन होता है तुम्हारे व्यवहार में
और हंसी उड़ाते हो
मेरी, मेरे काम और मेरी भाषा की.

क्या मानवीय है और क्या अमानवीय?
कौन सभ्य है और कौन असभ्य?
मैं बोरेवाला वंश मैं पैदा हुआ इन चीज़ों को नहीं जानता
मैं तो इतना ही जानता हूँ
कि मैं एक मुसलमान हूँ!
इस्लाम मेरा भी धर्म है!

मुझे बोरेवाला कहो
या कहो गिरिजन मुस्लिम
या कहो दलित मुस्लिम
या कहो कोई भी मुस्लिम
किन्तु एक बात साफ़ है...
यदि मैं बोरा बुनने का काम न करूँ तो
तुम्हारा जनाज़ा ही नहीं निकलेगा !!!

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हिंदुओं के अत्याचार और मुल्लाओं के भेद-भाव से
मैं अभी ही तो जागा हूँ. 
मेरी अपनी ही निष्क्रियता और उदासीनता
न जाने कब से जलाती रही है मुझे 
किन्तु अब मैं बजाने लगा हूँ बोरेवालों का नगाड़ा !!!

अनु: अशोक यादव 

(मूल तेलुगु से अनुवाद  नरेन बेडिदे के सहयोग से)  
  

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